उपन्यास >> पहला कदम पहला कदमयोगेन्द्र प्रताप सिंह
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आज शिक्षक संस्थाएँ कैसी हैं? शिक्षक क्यों हैं? शिक्षा कैसी हे? -शिक्षण का प्रबन्ध-तन्त्र क्या है? सब-कुछ यह उपन्यास ही बतायेगा
भारतीय शिक्षण संस्थाओं से हम भारतीयों की त्यागनिष्ठा तथा स्वात्म समर्पण के भावों का सम्बन्ध हजारों-हजारों वर्षो से चला आ रहा है। शिक्षक, गुरु, गुरुकुल में ऋषिजीवन और छात्र तपस्वी का जीवन व्यतीत करते रहे हैं। भारत के सामन्त, सम्राट्, नरेश, सम्पन्न सेठ तथा वणिक् दान का सर्वांश इन संस्थाओं को अर्पित करके समाज रचना की सत्त्वमयी परम्परा के निर्माण के प्रति संकल्पबद्ध थे। समाज तथा गुरुकुल ऋण से आजीवन मुक्त नहीं होता था। किन्तु आज, अंग्रेजों द्वारा स्थापित शिक्षानीति पर विदेशी तन्त्रों के प्रभावों का गहरा असर भारतीय स्वतन्त्रता के छह दशकों बाद और भी गहरा होता जा रहा है। शिक्षा ज्ञानार्जन, ज्ञानवृद्धि, अन्वेषण के लिए है. शिक्षा आत्मबोध, विवेकबोध, समझ तथा संकल्पशक्ति की प्रेरणा के लिए है। सुदामा जैसा शिक्षक लोक संकटों को झेलता हुआ, उनसे मुक्ति के लिए अपने सहपाठी त्रैलोक्यस्वामी श्री कृष्ण के पास जाने को तैयार नहीं था-यदि उसकी पत्नी उसे प्रतिदिन सुबह-शाम दुतकारती नहीं-किन्तु आज शिक्षक संस्थाएँ कैसी हैं? शिक्षक क्यों हैं? शिक्षा कैसी हे? -शिक्षण का प्रबन्ध-तन्त्र क्या है? सब-कुछ यह उपन्यास ही बतायेगा।
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